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नज़राना इश्क़ का (भाग : 32)

































रात काफी गहरी हो चुकी थी, लगभग सभी सो चुके थे, फरी अपने कमरे में चिंतित सी बैठी हुई थी। उसकी आँखें सूज कर लाल हो चुकी थी जैसे उसने काफी देर से रोया हुआ था, उसके साइड वाले डेस्क पर उसके बैग्स रखे हुए थे, जिनके पास एक दो किताबें रखी हुई थी, जिससे साफ पता चल रहा था कि उसकी पढ़ने की सभी कोशिशें बुरी तरह नाकाम रही। वह अपने आप को कुछ समझाने की कोशिश कर रही थी मगर मन में लगातार ख्यालों का उधेड़बुन चल रहा था, जो उसके सभी कोशिशों पर पानी फेर दे रहा था। काफी देर सोचने के बाद उसने अपना मोबाइल उठाया, और निमय को 'हेलो…' मैसेज टाइप किया और फिर न जाने क्यों सोच में डूब गई। फिर काफी देर सोचने के उसने सेंड करने से पहले ही वह डिलीट कर दिया और वापिस से अपने बेड पर बैठी कुछ सोचने लगी। उसके आँखों की लाली और माथे पर खींची चिंता की स्पष्ट लकीरें यह बताने के लिए काफी थी कि वह अब तक जो कुछ भी सोच रही थी उसे लेकर कोई निष्कर्ष नहीं निकाल पायी थी।

थोड़ी देर वह और इसी तरह बैठी रही, फिर उसने अपनी डायरी निकाली और अपने उलझन को शब्दों के रूप में उकेरने लगी।

"हे डायरी!

तुमने आज तक हर हमेशा मेरा साथ दिया, मुझे रास्ता सुझाया, मगर आज मैं जैसे उलझनों के दलदल में फंस गई हूँ। मुझे नहीं पता मैं ऐसा क्यों रियेक्ट कर रही हूँ पर सच यही है इससे ज्यादा उलझन मुझे कभी नहीं हुई, हाँ मैं जानती हूँ कि मैं अभी थोड़ी कच्ची हूँ, मुझे ये सब बिल्कुल भी समझ नहीं आता। पर ये बस चार दिन की दोस्ती नहीं है, ना ही ऐसा महसूस होता है। उसे जब पहले दिन ही देखा था मुझे वह कुछ अपना सा लगा था, हालांकि उसकी बहन के कारण कोई भी लड़की उसके आसपास नहीं फटकती थी मगर देखो अब हम दोस्त बन गए, और तो और जाह्नवी ने खुद इसकी पहल की।

मगर हम अपनी थोड़ी सी बात तक न कर पाए तब तक ये हादसा हो गया, ये रब भी इतना बेरहम है कि जैसे उसे मेरी खुशियों में आग लगाने का बड़ा शौक है। मैं बिना बात किये भी उसके अपनेपन के एहसास को महसूस कर पा रही थी। हो सकता है ये मेरी अकेलेपन एयर पागलपन का नतीजा हो जो मुझे ऐसा लग रहा है, पर उसके जिस्म पर घाव देखकर मेरे प्राण सूख गए। ऐसा क्यों हो रहा है डायरी मुझे कुछ पता नहीं, क्यों बार बार इन आँखों से आंसू बहते जा रहे हैं? क्यों ऐसा लग रहा है जैसे कुछ अपना कहीं छूट सा गया हो? क्या सिर्फ इसलिए कि वो कुछ दिन पहले मेरा पहला दोस्त बना! या फिर मैं जरूरत से ज्यादा सोच रहीं हूँ।

मुझे खुद पता नहीं कैसा महसूस हो रहा है, ऐसा लगता है कि मैं बस उससे बात करूं, उसका हाल पूछते रहूं, मेरे पास कोई शक्ति हो जिससे मैं उसे ठीक कर सकूं..!

अब तुम कहोगी इतना अपनापन ठीक नहीं फरी, पर अब ये मुझे पागलपन सा लग रहा है, बड़े साहब न जाने क्या करने की कोशिश में होंगे, और मैं विक्रम भाई के घर ज्यादा दिन रहना भी नहीं चाहती। मुझे पार्ट टाइम जॉब भी करना पड़ता है, ताकि मैं अपने खर्चे चला सकूं, मुझे किसी और पर निर्भर नहीं होना है!

मैं बहुत बड़े उलझन में हूँ डायरी! तुम ही कुछ उपाय बताओ, मैं तो अभी अपने इतिहास के जख्मों को नहीं भर पाई थी अब वर्तमान भी चोटिल होते जा रहा है, बताओ मैं क्या करूँ?

दुआ करना डायरी कि मेरी दुआएं असर करें, निमय जी जल्दी से ठीक हो जाएं..! यहां इस परिवार में सभी बहुत अच्छे हैं, परन्तु मैं फिर भी यहाँ नहीं रुक सकती, बाबा ने भी कई दिनों से बात नहीं की है, शायद अब उनपर भी निगरानी रखी जाने लगी, मैं क्या करूँ डायरी…!

दिल उलझा हुआ है, कैसे सुलझाऊँ
इन बहते अश्को को मैं ना रोक पाऊँ
चंद खुशियां नसीब होते ही चले आये
इस दर्द को मैं अपना रास्ता कैसे भुलाऊं।

#Fari

दिल बैठा जा रहा है डायरी, इतनी सारी बातें है कि मैं तुमसे कह तक नहीं पा रही हूँ, मुझे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है.. मैं क्या करूँ?

तुम सो जाओ डायरी, तुम्हें भी मैं यूँ ही परेशान करती रहती हूँ।

गुड नाईट डायरी
राधे राधे"

फरी डायरी वापिस अपने हैण्डबैग में रखने के उस हैण्डबैग को बड़े लगेज बैग में भर दिया और बाहर जाकर आँख मुँह धोकर फिर से बैठ गयी।

'क्या मैं जाह्नवी जी को कॉल करूँ?' उसके मन में अचानक से सवाल आया।

'नहीं नहीं..! रात काफी हो गयी है, अब तक वो सो गई होंगी, दिन भर उन्होंने बहुत भाग दौड़ किया हुआ है। अभी उनको कॉल मैसेज करना ठीक नहीं होगा।' फिर सोचते हुए फरी ने खुद ही खुद को जवाब दिया।

"तो क्या निमय जी अभी जाग रहे होंगे..?" उसके मन में विचार कौंधा। "नहीं! मैं भी कैसी बेवकूफ हूँ, अब तक वे दवाई और इंजेक्शन लेकर सो चुके होंगे, भला इतनी रात को कौन जागेगा, उन्हें तो आराम की सख्त जरूरत होगी।"

"अब मुझे भी सो जाना चाहिए, सुबह भाई से कहूंगी कि वो मुझे मेरे रूम पर छोड़ दें..!" फरी ने मन ही मन खुद से कहा और बेड अनमने ढंग से बेड पर पसर गयी।

■■■

इधर निमय अपलक छत को निहार रहा था, उसकी आँखों में इन्तेजार झलक रहा था। श्रीराम ने जाह्नवी को मनाने के कई जतन किये, निमय ने भी उसे घर भेजने की काफी कोशिशें की मगर सब बेकार, जाह्नवी ने किसी की बात न सुनी, न ही मानी, वो भी अपने भाई के बगैर में एक चेयर पर बैठे बैठे ही ऊँघ रही थी, जैसे उसे जोर की नींद आ रही हो मगर वह खुद को जगाये रखने की कोशिश कर रही हो। निमय उसे देखकर मुस्कुराया, मगर कुछ बोला नहीं। काफी देर तक वह जाह्नवी को ऐसे ही देखता रहा।

"ओये..! मेरा फोन देना तो जरा!" निमय ने जाह्नवी को पुकारते हुए कहा।

"हूँ…!" जाह्नवी ऊंघते हुए बोली।

"मेरा मोबाइल ढूंढ के दे, मुझे नहीं मिल रहा!" निमय धीरे से बुदबुदाया, क्योंकि उस वार्ड में लगभग सभी मरीज सो चुके थे।

"मैं क्या तुझे वाचमैन नजर आ रही हूँ?" जाह्नवी ने आँखे मलते हुए मुँह बनाकर पूछा।

"नहीं..! होती भी तो वाच वुमन होती, मैन होने का रत्तीभर भी चांस है ही नहीं!" निमय धीरे से हँसते हुए बोला।

"वॉचगर्ल….!" जाह्नवी ने अपने शब्द पर जोर देते हुए फिर से मुँह बनाया।

"चल तूने माना तो सही..! अब मेरा मोबाइल ढूंढ के मुझे दे मिस वॉचगर्ल..!" निमय मुस्कुराने की कोशिश करता हुआ बाला, सिर पर ज्यादा चोट लगने के कारण वह अब ठीक से मुस्कुरा भी नहीं पा रहा था।


"हुंह... !" अपनी गर्दन को झटकते हुए जाह्नवी ने उसका मोबाइल उसके हाथ में थमा दिया, जो कि उसी के तकिये के बगल में था। पर उस हाथ में ड्रिप लगी होने के कारण वह उसे ले नही पा रहा था, ऐसे में करवट बदलना भी काफी मुश्किल काम था।

"थैंक यू मेरी वॉचगर्ल!" मोबाइल पकड़ते हुए निमय बोला।

"हट्ट..! दुबारा इस नाम से मत बोलियो वरना इस बार तेरी पूरी खोपड़ी फूट जावेगी, याद है डॉक्टर ने कुछ भी करने से मना किया है! फोन ज्यादा चलाना मत समझा!" जाह्नवी उसे धमकाते हुए बोली। निमय के होंठो पर मुस्कान फैल गयी, जाह्नवी वापिस अपनी चेयर पर बैठते हुए, निमय के बेड पर पैर पसारकर बैठ गयी।

निमय काफी देर तक सोचता रहा, उसने कॉल लॉग खोला, उसके सामने फरी का नम्बर था, उसका जी हुआ कि उसे कॉल करे, एक बार उससे बात करे मगर इतनी रात को किसी लड़की को कॉल करना उसे ठीक नहीं लगा। वह मैसेज में गया, काफी देर में एक मैसेज लिखा, मगर फिर सेंड करने के बजाए डिलीट कर दिया। उसकी आँखों में तन्हाई नजर आ रही थी, इस हालत में भी उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसका एक हिस्सा उससे कहीं दूर हो, जबकि उसकी बहन उसके बिल्कुल पास थी। निमय अपने प्यार को खुदपर हावी नहीं होने देना चाहता था मगर उसकी सारी कोशिशें नाकामयाब रहीं। वह थोड़ी और देर तक फरी के नम्बर को स्क्रीन पर घूरता रहा, फिर फोन बंद करके अपने साइड में सरका दिया और सोने की कोशिश करने लगा।

■■■■

अगली सुबह…

ये सुबह भी रोज की तरह काफी सुहानी थी, मगर शहर के बीच में होने के कारण शोर शराबा थोड़ा ज्यादा सुनाई पड़ रहा था। जाह्नवी की नींद काफी पहले खुल गयी थी, मगर निमय अब भी सोया हुआ था। तभी जाह्नवी का मोबाइल हल्का सा वाइब्रेट कर शांत हो गया, उसने ओपन करके देखा तो फरी का मैसेज आया हुआ था।

"गुड मॉर्निंग जाह्नवी जी!"

"गुड मॉर्निंग फरी जी!" जाह्नवी ने उस मैसेज को घूरते हुए रिप्लाई किया।

"निमय जी कैसे हैं?"

"वो गधा तो घोड़े बेचकर सो रहा है। क्या हुआ?"

"कुछ नहीं, सॉरी!"

"अरे यार! वो ठीक हो जाएगा, अभी सोया हुआ है। अभी तो मैंने हम चारो के एक साथ होली खेलने का प्लान भी बनाया हुआ है।"

"अच्छा! ये तो बढ़िया है।" फरी का मैसेज आया, उसके मैसेज में लिखे शब्दों के अधूरेपन से लग रहा था जैसे उसे बहुत कुछ कहना था, पर वह कह ही नहीं पा रही थी।

"निमय की चिंता न करो यार! मेरे भाई को कुछ न होगा, तुम्हारी दुआएं हैं ना उसके साथ..!" जाह्नवी ने उसके मैसेज का उत्तर दिया, वह खुद थोड़ा भावुक हो चुकी थी।

'मैं समझ रही हूँ फरी, कही न कही तुम भी भाई की बेइन्तहा परवाह करती हो, तुम भले कह न पाओ पर इतना जान लो भाई और भाई की लाइन दोनो क्लियर है। दोनों एक दूसरे के लिए परफेक्ट हो, पर मैं नहीं चाहती कि तुम दोनों के बीच मैं आऊं!' उसके मैसेजेस को देखते हुए जाह्नवी ने मन ही मन कहा और वहीं टहलने लगी। तभी श्रीराम जी एक डॉक्टर के साथ वहां आये, जो कि वरदान था।

"अब इसे और कितना दिन लगेगा डॉक्टर?" जाह्नवी ने वरदान को देखते ही सीधा सवाल किया।

"पता नहीं, अभी कुछ कह नहीं सकते, पर जिस हिसाब से ये खुद को तेजी से रिकवर कर रहा है, ऐसे में बस दो या तीन दिन में ही हॉस्पिटल से छुट्टी मिल सकती है, मगर इन्हें कम से कम दो से तीन सप्ताह का प्रॉपर बेड रेस्ट चाहिए, और ये ध्यान रखना है कि आगे कभी सिर पर कोई ऐसी चोट न लगे, ऐसे में आगे काफी खतरा हो सकता है!" डॉक्टर वरदान ने बताया।

"अरे नहीं डॉक्टर! मैं कल तक घर जाने लायक ठीक हो जाऊंगा!" निमय, वरदान की ओर देखकर मुस्कुराते हुए बोले। उसे देखने के बाद उसके पापा ने कुछ नसीहतें दी और डॉक्टर के साथ बाहर चले गए।

"शर्मा जी आपका बेटा है तो बड़ा ढीठ! ऐसे में जहां मरीज अपने आपको कमज़ोर मानकर नेगटिव जोन में जाने लगता है, ये अभी भी इस चीज को एन्जॉय की तरह ले रहा है। मगर एक बात याद रखियेगा, अगर इसके सिर पर दुबारा ऐसी चोट लगी तो शायद ऐसा न हो, इसलिए ऐसा कभी न हो इसका आपको पूरा ख्याल रखना होगा।" डॉक्टर वरदान कहते हुए अपनी केबिन की ओर बढ़े।

"मैं अपनी पूरी कोशिश करूंगा डॉक्टर साहब! धन्यवाद..!" श्रीराम ने उसका धन्यवाद अदा किया और वे वापिस निमय के पास चले आये। उन्हें देखते ही जाह्नवी कुर्सी से उठकर खड़ी हो गयी।

"सुनो जानू बेटा, अभी तुम घर चलो, पहले नहा धो लेना, फिर निमय के लिए खाना लेकर आ जाना। ठीक है.?" श्रीराम ने जाह्नवी के सिर पर सहलाते हुए कहा। जाह्नवी मना करना चाहती थी, मगर उसे पता था इस बार उसकी जिद काम नहीं आएगी, इसलिए वो अपने पापा के साथ घर जाने के लिए मान गयी।

"अभी जा रही हूँ, अपना ख्याल रखना, जल्दी से आउंगी, ठीक है ना?" जाह्नवी हिदायत भरे स्वर में कहते हुए कमरे से बाहर निकल गई, निमय उसे जाते देख मुस्कुराया।

अभी जाह्नवी के गए पांच मिनट भी नहीं हुआ था, निमय का हाथ अपने मोबाइल की ओर बढ़ा, हाथ में पकड़ते हुए फ़ोन जोर से घनघनाया। यह एक मैसेज था निमय ने जल्दबाजी दिखाते हुए इनबॉक्स ओपन किया। जिसमें सबसे ऊपर फरी का नाम शो हो रहा था, मैसेज का थोड़ा सा हिस्सा दिखाई दे रहा था, मगर बाकी ओपन करने के बाद ही दिखाई देता।

"हेलो निमय जी! कैसे हो आप? अब तबियत कैसी है आपकी? पैन कैसा है अभी..!" पहले ही मैसेज में सवालों का अंबार लगा हुआ था, निमय बस मैसेज को देखता रह गया, तभी एक नर्स उसके पास आई, निमय ने फोन साइड में रख दिया।

क्रमशः….


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3 Comments

Pamela

15-Feb-2022 01:24 PM

निमय ठीक हो गया...

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Zainab Irfan

08-Feb-2022 05:00 PM

Good

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Thank You

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